!! समेट ले मुझ को !!
बहुत थक गया हूँ जिन्दगी
बता अब मेरा बिस्तर कहाँ है
सो जाऊं सकूं से चिरनिंद्रा में
मेरा बता बिछोना कहाँ है ??
चलता रहा रात दिन बिना
परवाह किये किसी पथ की
न थी खबर कि डगर होगी
सीधी अब तेरे इस नगर की !!
खुद को भी भूला गया में
बस चलता ही चला गया मैं
तलाश थी बस कमाने की
जो कमाना था वो भूल गया मैं !!
बस समेट ले मुझ को
अब अपनी आगोश में
नहीं चल पा रहा हूँ अब
किसी भी डगर पे !!
बहुत सह के आया हूँ अब
मैं तेरे इस बिस्तर की सेज पे
कर मुझ को काबू इतना अब
कोई आये न आवाज देने फिर से !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ