समारंभ
यदि व्याकुलता अपने अंतर्मन की
तुमको मैं दिखला देता
नीडो के खग्शावक का
स्पंदन तुमको करवा देता,
आमोद नील व्योम विचर का
प्रमोद सलिल वारिधर का
क्रंदन कर आर्द्र मुख से
भृंग नाद भी गूंजेगा
नीश अमीश की ज्वाला में
प्रलाप कहां तक सोभेगा
समारंभ कभी तो होगा
कर्दम मे कुमुदनी का
अनु की तंद्रा मुद्रा में
बन जिष्णु वसुधा का
प्रखर अट्टहास मानस का
वसुधा पर गूजेंगा!
वसुधा पर गूजेंगा।।