समायोजन
देश देखा, विदेश देखा , पर देखा ना ,
अपना सा कोई विशेष देखा ,
हर कृति अपने में अनूठी है ,
कोई किसी से ना मेल खाती है ,
हर आचार – विचार अलग ,
हर आहार – विहार अलग ,
मूल्यों ,मानकों के मापदंड अलग ,
हर दृष्टिकोण, हर निष्कर्ष अलग ,
हर अनुमान, हर प्रमाण अलग ,
इस विभिन्नताओं के संसार में
समरसता की व्यावहारिकता
ढूंढना मुश्किल है ,
समायोजन के बिना संसार में
सामंजस्य की संभावना मुश्किल है।