समानता या उग्र नारीवाद
चलो आज हम अवलोकन करते हैं कि क्या ये वही भारत है, जिसकी सोच हमारे स्वतंत्रता सेनानी रखते थे! जिस सोच के साथ भारत के संविधान का गठन किया गया था।
क्या ये वही भारत है जो आज आप और हम सोचते है कि हमारा देश कुछ ऐसा होगा। नहीं ना।
क्या हमारे देश में आज महिलाओं और पुरुषों में समानता है?
आज जहां हम सोचते है कि महिलाओं का उत्पीड़न हो रहा है और उनकी सुरक्षा के लिए नए-नए कानून बना रहे है! वहीं जरूरतमंद महिलाए जो सच में उत्पीड़न का शिकार हो रही है उनको उनकी सुरक्षा के लिए बनाए गए कानूनों की जानकारी ही नहीं है! और वे अत्याचार सहती चली जा रही है ।
वहीं कुछ महिलाए अपनी सुरक्षा के लिए बनाए गए कानूनों का फायदा उठा रही हैं! सिर्फ चंद पैसों के लिए, अपने एहम को संतुष्ट करने के लिए, पुरुषों को बदनाम करने के लिए!
यकीन नहीं होता ना तो सरबजीत वाला किस्सा देख लो, लखनऊ की थप्पड़बाज महिला को ही ले लो! सिर्फ यही नहीं दिल्ली की महिला जो पुलिस कर्मियों पर हाथ उठा रही है!
और ऐसे एक दो नहीं कई मामले हमे देश के अंदर आए दिन देखने को मिलते हैं जहां लड़कियां अपने लिए बनाए गए कानूनों का फायदा उठाते हुए दिख जाती हैं। फिर चाहे वो दहेज को लेकर हो, छेड़छाड़ हो या रेप जैसे संवेदनशील मुद्दे ही क्यों ना हो! वे ऐसे इल्जाम किसी निर्दोष आदमी पर लगाते हुए ज़रा भी नहीं हिचकिचाती।
तो आज सशक्तीकरण की ज़रूरत किसे है महिलाओं को या पुरुषों को?
आज एक तरफ जहां महिलाएं हर फील्ड में चाहे वो शिक्षा का क्षेत्र हो, खेल हो, कोई प्रोफेशनल फील्ड हो या कोई और क्षेत्र, हर जगह अपने आप को साबित कर रही है कि वो भी बेहतर है बस उनको मौका मिलना चाहिए! वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसी भी महिलाए है जो फेमिनिज्म के नाम पे सिर्फ मर्दों के खिलाफ नफरत फैला रही हैं और ‘ऑल मेन्स आर डॉग्स’ से तो आप सब वाकिफ ही होंगे।
आज महिलाए ओलंपिक में गोल्ड मेडलिस्ट नीरज चोपड़ा के पोस्ट पे अभद्र टिप्पणियां कर रही है
तो क्या ये सब अगर कोई पुरुष करता तो इन चीजों को इतने ही आसानी से लिया जाता?
जहां हम आज पुरुष और महिला में कोई भेद नहीं करते तो आज गलत करने वाली महिलाओं के लिए कोई कानून क्यों नहीं? सिर्फ इसलिए कि वो महिलाए है? वो किसी भी निर्दोष इंसान पे इल्जाम लगायेंगी?
आज जहां हम इक्वेलीटी की बात करते है तो कानून भी दोनो के लिए समान होना चाहिए। चाहे वो पुरुष हो या महिला ।
ये सवाल है हमारे कानून के लिए और हर उस व्यक्ति के लिए जो ये सोचता है कि महिला सशक्तिकरण की आज भी बेहद जरुरत है ? क्या अब पुरुष अपने आप को प्रताड़ित महसूस नहीं कर रहे है? क्यों पुरुषों के लिए कोई आगे नहीं आता? क्यों उनके अधिकारों की बात नहीं होती? क्यों उनके लिए कानून समान नहीं है?
क्या आपको नहीं लगता कि अब महिला नहीं पुरुष शाशक्तिकरण की ज़रूरत है?
रक्षिता बोरा