समाधान
हमारे जीवन में कई बार ऐसे अवसर आते हैं। जब हम अपने आप को असहाय सा महसूस करते हैं।
इसका कारण यह है कि हमारी प्रज्ञा शक्ति बाहरी प्रभाव से हमें मुक्त होने का निराकरण ढूंढने में असमर्थ पाती है।
जिसका मुख्य कारण हमारे मस्तिष्क में नकारात्मक सोच की अधिकता है। जिसके कारण सकारात्मक सोच जो कि समस्या से जूझने के लिए आवश्यक है का अभाव होने लगता है ।
इस तरह की सोच की नकारात्मकता हमारे आसपास के वातावरण एवं समूह की नकारात्मक मनोवृत्ति से उत्पन्न होती हैं। जिसका परोक्ष प्रभाव हम पर पड़ता है।
कोई भी समस्या का रूप उतना बड़ा नहीं होता जितना कि उसे बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जाता है।
आजकल इसमें संचार माध्यमों जैसे टीवी और अन्य प्रचार एवं प्रसार माध्यम इंटरनेट ,यूट्यूब, फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर, इंस्टाग्राम, की बहुत बड़ी भूमिका है।
जो नकारात्मक सोच को एक बड़ी जनसंख्या में फैलाने के लिए जिम्मेवार है। जिसके फलस्वरूप जनता में व्यक्तिगत सोच का अभाव है। और आत्म विश्लेषण की कमी नजर आती है।
बिना सोचे समझे और यथार्थ जाने बिना झूठी खबरों को जिन्हें सच बनाकर पेश किया जाता है सच मान लिया जाता है।
व्यक्तिगत स्वार्थ पूर्ति के लिए एवं राजनीतिक लाभ के लिए किसी व्यक्ति का चरित्र हनन करना आजकल एक आम बात हो गई है।
जिसमें इस प्रकार के माध्यमों का भरपूर प्रयोग किया जाता है।
हमारे देश में एक बड़ा तबका अंधभक्ति एवं अंधश्रद्धा का शिकार है । जो अपने मान्यवर के लिए कुछ भी नकारात्मक भाव स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है।
अतः जो सच्चाई की आवाज उठती है उसे वहीं पर दबा दिया जाता है। जिससे वह आवाज लोगों तक न पहुंचे और उनकी सोच में बदलाव ला सके।
दरअसल इस प्रकार लोग एक वैचारिक गुलामी का शिकार होकर मानसिक गुलाम बन गए हैं । जिनकी सोच में बदलाव लाना अत्यंत दुष्कर एवं असंभव है।
नीतिगत एवं कानूनी मामलों पर भी दोहरे मापदंड अपनाए जाते हैं । जिसके कारण नीतिगत निर्णय गलत एवं न्याय प्रक्रिया लचर होती जा रही है।
परिस्थिति के समग्र आकलन एवं लिए गए निर्णयों के विधिवत निष्पादन एवं निर्वहन की कमियों के चलते एवं जल्दबाजी में लिए गए निर्णयों के कारण हमें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है ।
जिनसे समस्याओं का समाधान होने में बाधाएं आ रही है और जटिलता बड़ी है ।
इस कारण एक बड़ी जनता अपने आप को असहाय सा महसूस कर रही है। जिसके प्रतिफल में जनता में नकारात्मक सोच उत्पन्न हुई है।
इन समस्त कारकों की पृष्ठभूमि में जनसाधारण का असहाय सा अनुभव करना स्वाभाविक है।
अतः हमें अपना आत्मविश्वास जगा कर अपनी सकारात्मक सोच को जागृत करना पड़ेगा।
तभी हम हमारी आंतरिक तनावग्रस्त स्थिति से उबर कर एक सार्थक सोच को विकसित करने में संभव हो सकेंगे।
और परिस्थिति वश असहाय सा ना महसूस करते हुए समस्या का संभावित उचित समाधान खोजने में सफल हो सकेंगे।