समाज
एक दूसरे के पुरक
मानव व समाज
खोजते हैं आपस में
अच्छे लोग,अच्छे दिन
संस्कार एवं सभ्यतायें
सुंदर भारत समृद्ध गाॅव
साफ राजनीति बेदाग नेता
जबकि हर तरफ समाज पर
आरोप लगाता धर्म जाति
पाप पुण्य तेरा मेरा की बातों
में स्वयं रोटियां भी सेकता
तंज कसते मूक से मानव
कभी कभी तुम भुल जाते हो
थोडे से प्रयासों पर पूर्ण रूप
सहमत अधिकार माँगते हो
गलतियों के पुतले कैसे तुम
बस सिर्फ इंसाफ मागते हो
कहीं तुम कर्ता,कहीं वक्ता हो
सुनो!तुम कड़ी तुम समाज हो
इसके रचियता व रचनाकार हो
संभलो तुम इसके अंगी कार भी
नीलम पांडेय नील