समाज से गुफ्तगू
आज बहुत समय बाद समाज से गुफ्तगू करने का मन कर रहा है,
हर कदम पर हमें तजुर्बों से भर दिया उससे कहने का मन कर रहा है,
जमाना कहता है कि हर बच्चे का पहला स्कूल उसका घर होता है,
समाज में रहने लायक जिस समाज ने हमें बनाया उससे बड़ा विद्यालय कहां होता है,
हमारी हर बात को सही गलत के तराजू में जो हर वक़्त तौलता है,
उसी समाज से यह दिल मेरा आज कई सवाल पूछता है,
बेटी के स्वाभिमान की रक्षा को जो यह अपना फ़र्ज़ बताता है,
क्यों उसी फ़र्ज़ को बहू के लिए दबाकर संस्कार का राग गाता है,
घरेलू हिंसा के बारे में बड़ी बातें कर जो नैतिकता की सीख हमें देता है,
उस नैतिकता की आड़ में बुजुर्गो पर हुए अत्याचार को क्यूं भूल जाता है,
हैवानियत का शिकार हुई लड़की के लिए मोमबत्ती लेकर जो मार्च निकाला जाता है,
उसी आवाज़ को मैरिटल रेप के नाम पर क्यूं ख़ामोश किया जाता है,
अस्मिता की परीक्षा से जो बेटी के मान सम्मान को बचाता है,
वही समाज अपनी बहु के लिए उस परीक्षा को क्यूं जरूरी मानता है,
वहशीपन दिखाते लड़के यहां और जो नन्ही जान को भी न बख्शते हो,
उन पर क्यूं मानवता और मानवाधिकार के नाम पर रहम किया जाता है,
बेजुबानों की मौत पर जो आंसू बहाता यह समाज हर वक़्त,
उसे किसी बेगुनाह की आत्महत्या का कातिल क्यूं नजर नहीं आता है,
जिसने सिखाई दुनियादारी हमें और दुनिया में रहने का सलीख़ा भी सिखाया है,
क्यूं वही समाज मेरे इन सवालों पर हमेशा ख़ामोश हो जाता हैं