समाज सुधार
मैं हुँ एक चिंगारी,
जो लगाएगी आग,
मेरा शीशे की तरह साफ़ है मार्ग।
अपने कलम से लिखूँगा कुछ ऐसा,
न होगा वो पैसे के लिए ,
न होगा वो नफरत जैसा।
मैं पहले अपने अंतरात्मा को करूँगा स्वछ ,
फिर अपनी कलम को चलाऊंगा,
और जागरूकता फैलाऊँगा।
अपने कलम को इस्तेमाल करूँगा ऐसे,
जैसे वो हो तलवार,
उसी तलवार से बुराई पर करूँगा वार ,
और करूँगा समाज सुधार ।
– सतबीर सिंह