समाज के दर्पण में नारी
भारत जैसे लोकतंत्र में आजादी को दबा डाला,
जाति धर्म का भेद बता कर हिंसा को क्यों बढ़ा डाला ।
देश की बिटिया आज राह में डर कर ही तो चलती है,
बाद में कैंडल मार्च दिखाकर जनता आंखें भर्ती है ।
नदियों को माता कहते हम पर्वत सारे पिता समान,
ऐसा भारत देश हमारा फिर भी क्यों होता अपमान ।
कारावास में हत्यारों को सदियों रखकर पाला है,
दिल कहता इन्हें फांसी दे दो जब से होश संभाला है ।
रामायण का पाठ जहां पर, नन्हा बालक करता है,
उसी गली में एक दरिंदा, यूँ दुष्कर्म भी करता है |
बहनों के मुख पर नकाब को देख के सोचा करता हूं, लज्जा है या खौफ है इनमें उत्तर ढूंढा करता हूं ।
सौ क़ानन बनाकर भी, शासन क हाथ है बंधे हुए, इसीलिए है पापियों के हाथ पाप से सने हुए |
जिंदा लाश – सा बना दिया है फुलवारी के फूलों को, तनहा-तनहा बना दिया है सावन के उन झूलों को,
आसक्ति की भेंट चढ़ा कर भोका रूह में शूलों को,
फांसी पर है चढ़ा दिया जज्बातों और उसूलों को ।कलयुग में दोहराई जाती तुम ही अमर कहानी हो,
उठो तुम्ही चामुंडा हो तुम ही झांसी की रानी हो ।
घर से बाहर आकर नारी हो आवाज लगाना है,
मैं हूं नारी सब पर भारी अब मेरा भी जमाना है ।।