समाज का दर्पण और मानव की सोच
दर्पण में अपने सौंदर्य को देख
स्वयं से प्रश्न पूछती
क्या मैं भली लगती हूं
लज्जा का आंचल पटककर
समाज से पूछती हूं
नये नये परिधान पहनकर
अपने पिया को मनाने को
मै जोगन सी बन जाती हूं
विस्मित होकर मैं अपने से प्रश्न पूछती हूं
समाज का बंधन बंधने के लिए है
स्वतंत्र विचरण को मानती हूं
घर की चार दीवारी मुझे बांधती
मैं इस बंधन से मुक्ति चाहती हूं
उडूंगी समाज के दायरे से हटकर
निर्भयता से समाज के बंधन काटूंगी
जो नारी को अबला बना रहा है
अब नारी अबला नहीं सबला बनूंगी
नाम-मनमोहन लाल गुप्ता
पता-मोहल्ला जाब्तागंज, नजीबाबाद, जिला बिजनौर, यूपी
मोबाइल नंबर 9927140483