समाज और सुरक्षा
प्रिया दिल्ली के पॉश एरिया में जॉब करती थी और ऑफिस के पास ही एक फ्लैट में रहती थी , एक दिन प्रिया की रूममेट चंचल नहीं थी , वो किसी काम से आउट ऑफ स्टेशन थी और सुबह आने वाली थी , प्रिया को अकेले ही बाजार से सामान लेने जाना था , टीवी पे एक बड़ा अच्छा डांस प्रोग्राम आ रहा था , प्रिया ने घड़ी देखी सात बज रहे थे रात के ..उसने सोचा की अभी जाउंगी ले आउंगी सामान , इस तरह उसने एक के बाद एक कई प्रोग्राम देख डाले फिर उसने घड़ी देखी अब रात के दस बज रहे थे ,प्रिया को एहसास हुआ की काफी देर हो गयी लेकिन कई दुकान रात ग्यारह बजे भी खुली रहती हैं ऐसा सोच उसने थैला उठाया और चल दी ..सहसा अपनी ही धुन में कुछ दूर पहुंची थी की एक कार बगल से गुज़री उसमे नशे में धुत्त चार पांच युवक बैठे थे उनमे से एक युवक ने कार में प्रिया को खींचने की कोशिश की …एक दो लोगों ने वाक़या देखा भी लेकिन लोगों ने कुछ करने का प्रयास नहीं किया …प्रिया किसी तरह हाथ छुड़ा के भागने में सफल रही , वो इतना डर गयी की पुलिस स्टेशन जाने की जगह सीधा अपने फ्लैट गयी …उस रात उसे दहशत में नींद न आयी …रात भर उसे उन वहशी युवकों का ख्याल डराता रहा , सुबह उसकी रूममेट चंचल आयी उसने सारा वाकया चंचल को सुनाया , चंचल उसको लेकर पुलिस स्टेशन गयी, वहां पुलिस ने आड़े तिरछे सवाल किये की कार का नंबर बताओ, लड़के तुम्हारी पहचान के थे क्या वगैरह वगैरह अब प्रिया ने भागने के प्रयास में कार का नंबर नोट किया ही नहीं और उस अवस्था में कोई कर भी नहीं सकता था , इंसान पहला प्रयास खुद को बचा के भागने का ही करता है, बहरहाल पुलिस ने बेमन से कंप्लेंट दर्ज कर ली , घर लौट के चंचल प्रिया को डांटने लगी की क्या ज़रूरत थी रात के दस बजे अकेले जाने की ? प्रिया रोवासी सी बोली की क्या हम लड़कियां ही गलत हैं ? हम ही ऊँच नीच देखें उन गन्दी मानसिकता के लड़को को कुछ क्यों नहीं सिखाया जाता जिनके डर से हम निकल नहीं पातीं …हम लड़कियों का तो जैसे वजूद ही खतरे में पड़ गया हो , चंचल प्रिया को समझते बोली की देखो प्रिया मैं तुम्हे गलत नहीं कह रही “तुम बात को समझो तो जैसे शरीर का कोई अंग ख़राब हो जाता है तो क्या वो एक ही दिन में सही हो जाता है ? नहीं न ? बहुत सारी चिकित्सा के बाद वो अंग सही होता है …उसी ख़राब अंग की तरह हमारा ये समाज है , इसे एक दिन में सही नहीं किया जा सकता …बरसों बरस बीत जाते हैं समाज का सुधार करने में तो तब तक मेरी बहन जो हमसे हो सकता है वो हम कर लें जैसे अगर बहुत ज़रूरी न हो तो हम रात को घरों से अकेले न निकलें या निकलना ही पड़े तो अपने मित्रों ..परिवारजनों से लोकेशन शेयर कर लें “, चंचल आगे बोलती गयी की “बहन ये समाज भी हम युवा और हमारे बुजुर्ग और हमारा प्रशाशन ही सुधारेगा और एक दिन बदलाव ज़रूर आएगा लेकिन तब तक हमें सावधानियां बरतनी होंगी ” , बात प्रिया की समझ में आयी और उसने चंचल से वादा किया की आगे से वो ख्याल रक्खेगी , इस पे चंचल ने हल्का सा मुस्कुराया और प्रिया का मन हल्का करने के लिए उसका मनपसंद हलवा बनाने किचन की ओर चल दी |
द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’