समाज और बड़ा पर्दा
कहने को बड़े पर्दे समाज के आइना का किरदार निभाते हैं,
उस आइने में अपनी सभ्यता संस्कृति को ही हम क्यूं भूल जाते हैं,
करते हैं अश्लीलता का प्रदर्शन भद्दे कमेंट दिखाते हैं,
रहकर समाज के बीच में समाज से कटते जाते हैं,
होता समाज में कुछ भी गलत तो आवाज़ बेख़ौफ़ उठाते हैं,
पर उस गलती में किए अपने योगदान को नजरंदाज करते जाते हैं,
गलतियों से सीखते नहीं अपनी बल्कि और तेज़ी से दोहराते हैं,
फैशन की आड़ में ना जाने हम क्या किरदार दिखाते हैं,
माना समय रहते दुनिया संग चलते रहना चाहिए,
पर अपने आप को भूल कर आगे बढ़ना बोलो कहां तक सही है,
खुद की नज़रों में गिरकर दुनिया में जो उठना जानता है,
सच कहूं तो खुद के वजूद से वो सदैव अनजान रहता है,
रंगमंच की इस महफ़िल में दिखाओ तो इक बार खुद को
फिर सोचो क्या छोड़ दिया तुमने चलने दुनिया के संग को