Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 Jul 2021 · 5 min read

समस्या क्या है

समस्या है क्या ? उदाहरण से समझते हैं । कल मैं अपने दुकान से आ रहा था , वही रास्ते मे मेरा पढ़ाया हुआ छात्र मिल गया ,बस ऐसे ही बाते होने लगी ,बातों बातों में उसने कहाँ की सर मैं समस्या से ग्रस्त हूँ घर की स्थिति ठीक नही है और मैं अपनी पढ़ाई जारी नही कर सका । अब धीरे धीरे मेरे सपने भी मर रहे हैं मैं क्या करूँ । शायद यह उदाहरण से समझ आया होगा कि , वास्तव में समस्या के जड़ बड़े गहरे है , जिसे व्यक्ति के विकास , सामाजिक विकास , न्यायिक विकास और शारिरिक विकास अवरुद्ध हो जाते हैं

खैर धूप और छांव की तरह जीवन में कभी दुख ज्यादा तो कभी सुख की स्थितियां ज्यादा होती हैं। जिंदगी की सोच का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि जिंदगी में जितनी अधिक समस्याएं होती हैं, सफलताएं भी उतनी ही तेजी से कदमों को चूमती हैं।समस्याओं के बगैर जीवन के कोई मायने नहीं हैं। समस्याएं क्यों होती हैं, यह एक विचारणीय प्रश्न है। यह भी एक प्रश्न है कि हम समस्याओं को कैसे कम कर सकते हैं। इस प्रश्न का समाधान आध्यात्मिक परिवेश में ही खोजा जा सकता है। अति चिंतन, अति स्मृति और अति कल्पना-ये तीनों समस्याएं पैदा करती हैं। शरीर, मन और वाणी-इन सबका उचित उपयोग होना चाहिए। यदि इनका उपयोग न हो, इन्हें बिल्कुल काम में न लें तो ये निकम्मे बन जाएंगे। यदि इन्हें बहुत ज्यादा काम में लें, अतियोग हो जाए तो ये समस्या पैदा करेंगे। इस समस्या का कारण व्यक्ति स्वयं है और वह समाधन खोजता है दवा में, डॉक्टर में या बाहर ऑफिस में। यही समस्या व्यक्ति को अशांत बनाती है। जरूरत है संतुलित जीवन-शैली की। जीवन-शैली के शुभ मुहूर्त पर हमारा मन उगती धूप की तरह ताजगी-भरा होना चाहिए, क्योंकि अनुत्साह भयाक्रांत, शंकालु और अधमरा मन समस्याओं का जनक होता है। यदि हमारे पास विश्वास, साहस, उमंग और संकल्पित मन है, तो दुनिया की कोई ताकत हमें अपने पथ से विचलित नहीं कर सकती।हम सबसे पहले यह खोजें, जो समस्या है उसका समाधान मेरे भीतर है या नहीं? बीमारी पैदा हुई, डॉक्टर के पास गए और दवा ले ली। यह एक समाधान है पर ठीक समाधान नहीं है। पहला समाधान अपने भीतर खोजना चाहिए। एक व्यक्ति स्वस्थ रहता है क्या वह दवा या डॉक्टर के बल पर स्वस्थ रहता है या अपने मानसिक बल यानी सकारात्मक सोच पर स्वस्थ रहता है? हमारी सकारात्मक सोच अनेक बीमारियों और समस्याओं का समाधान है। जितने नकारात्मक भाव या विचार हैं, वे हमारी बीमारियों और समस्याओं से लडऩे की प्रणाली को कमजोर बनाते हैं। प्राय: यह कहा जाता रहा है-ईष्र्या मत करो, घृणा और द्वेष मत करो। एक धार्मिक व्यक्ति के लिए यह महत्वपूर्ण निर्देश है, किंतु आज यह धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, स्वास्थ्य की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बन गया है। विज्ञान ने यह प्रमाणित कर दिया है कि जो व्यक्ति स्वस्थ रहना चाहता है उसे निषेधात्मक भावों से बचना चाहिए।

कहते हैं न
“हर मुश्किल के पत्थर को बनाकर सीढ़ियां अपनी,
जो मंजिल पर पहुंच जाए उसे ‘इंसान’ कहते हैं।”
जबकि फ्रेंकलिन ने सही ही कहा था- ‘जो बात हमें पीड़ा पहुंचाती है, वही हमें सिखाती भी है।’ और इसलिए समझदार लोग समस्याओं से डरते नहीं, और न हीं भागते, बल्कि लड़ते है ।
पर अधिकांश लोग इतने बुद्धिमान, ऐसे उत्साह से भरे नहीं होते। समस्याओं में छिपे दर्द से बचने के लिए हम में से अधिकांश लोग, उन समस्याओं से कतराने की कोशिश करते हैं, हम उनसे मुंह मोड़ना चाहते हैं, उन्हें अनदेखा करना चाहते हैं, उनके प्रति उपेक्षा का भाव रखना चाहते हैं, उन्हें भूल जाना चाहते हैं। कभी-कभी समस्याओं का अस्तित्व भी है, यह ही नहीं मानते। सोचते हैं, ऐसा रुख अपनाने से शायद समस्याएं अपने आप गायब हो जाएंगी। कभी-कभी इन समस्याओं की उपेक्षा करने, उन्हें भूलने के लिए मादक द्रव्यों का सहारा भी लेते हैं- शराब, सिगरेट, नींद की गोलियां आदि ।
खैर जिंदगी कठिन है- अधिकांश लोग इस सत्य को नहीं देख पाते या देखना नहीं चाहते। इसके बदले वे संताप करते रहते हैं कि उनकी जिंदगी में समस्याएं ही समस्याएं हैं। वे उनकी विकरालता, उनके बोझ की ही शिकायत करते रहते हैं। परिवार में, मित्रों में इसी बात का रोना रोते रहते हैं कि उनकी समस्याएं कितनी पेचीदी, कितनी दुःखदायक हैं और उनकी दृष्टि में ये समस्याएं न होतीं तो उनका जीवन सुखद, आसान होता। उनके लिए ये समस्याएं उनकी अपनी करनी का फल नहीं, वे उन पर औरों द्वारा थोपे गए अभिशाप हैं। असल में समस्याएं विकराल होती ही इसलिए हैं कि हम उनको अपनी गलतियों का परिणाम न मानकर दूसरों को इनका कारण मानते हैं।
हमारा जीवन दुखी एवं कठिन इसलिए है कि हम समस्याओं का सामना करने और उन्हें सुलझाने को एक पीड़ादायक व कष्टकारक प्रक्रिया मानते हैं जबकि ऐसा नहीं होता। समस्याएं हैं तो उनका समाधान भी होता ही है। समस्याओं को आप किस नजरिए से देखते हैं, उसी आधार पर उनके समाधान भी सरल या जटिल प्रतीत होते हैं।

निष्कर्ष रूप में स्वामी विवेकानंद की शिक्षा लेते हैं –
एक बार एक महिला ने स्वामी विवेकानंद से कहा, ‘स्वामीजी, कुछ दिनों से मेरी बाईं आंख फड़क रही है। यह कुछ अशुभ घटने की निशानी है। कृपया मुझे कोई ऐसा तरीका बताएं जिससे कोई बुरी घटना मेरे यहां न घटे।’
उसकी बात सुन विवेकानंद बोले, ‘देवी, मेरी नजर में तो शुभ और अशुभ कुछ नहीं होता। जब जीवन है तो इसमें अच्छी और बुरी दोनों ही घटनाएं घटित होती हैं। उन्हें ही लोग शुभ और अशुभ से जोड़ देते हैं।’
महिला बोली, ‘पर स्वामीजी, मैंने अपने पड़ोसियों के यहां देखा है कि उनके घर में हमेशा शुभ घटता है। कभी कोई बीमारी नहीं, चिंता नहीं जबकि मेरे यहां आए दिन कुछ न कुछ अनहोनी घटती रहती है।’
इस पर स्वामीजी मुस्कराकर बोले, ‘शुभ और अशुभ तो सोच का ही परिणाम है। कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है जिसे केवल शुभ ही शुभ या केवल अशुभ कहा जा सके। जो आज शुभ मालूम पड़ती है, वही कल अशुभ हो सकती है, जैसे एक कुम्हार ने बर्तन बनाकर सुखाने के लिए रखे हैं और वह तेज धूप की कामना कर रहा है ताकि बर्तन अच्छी तरह सूखकर पक जाएं, दूसरी ओर एक किसान वर्षा की कामना कर रहा है ताकि फसल अच्छी हो। ऐसे में धूप और वर्षा जहां एक के लिए शुभ है, वहीं दूसरे के लिए अशुभ। यदि वर्षा होती है तो कुम्हार के घड़े नहीं सूख पाएंगे और यदि धूप निकलती है तो किसान की फसल अच्छी तरह नहीं पकेगी इसलिए व्यक्ति को शुभ और अशुभ का खयाल छोड़कर केवल अपने नेक कर्मों पर ध्यान लगाना चाहिए तभी जीवन सुखद हो सकता है।’
अंततः मेरी दोस्त भी ठीक कहती थी
“समस्या कितनी बड़ी क्यो न हो उसे हमेशा छोटा समझना चाहिए ।”

Language: Hindi
Tag: लेख
3055 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
हम तो फूलो की तरह अपनी आदत से बेबस है.
हम तो फूलो की तरह अपनी आदत से बेबस है.
शेखर सिंह
तेरे मेरे बीच में,
तेरे मेरे बीच में,
नेताम आर सी
* काव्य रचना *
* काव्य रचना *
surenderpal vaidya
हो जाती है रात
हो जाती है रात
sushil sarna
जिंदगी को बोझ नहीं मानता
जिंदगी को बोझ नहीं मानता
SATPAL CHAUHAN
राम का आधुनिक वनवास
राम का आधुनिक वनवास
Harinarayan Tanha
हिन्दु नववर्ष
हिन्दु नववर्ष
भरत कुमार सोलंकी
अधर मौन थे, मौन मुखर था...
अधर मौन थे, मौन मुखर था...
डॉ.सीमा अग्रवाल
3333.⚘ *पूर्णिका* ⚘
3333.⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
चलो
चलो
हिमांशु Kulshrestha
मातु काल रात्रि
मातु काल रात्रि
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
सत्य की विजय हुई,
सत्य की विजय हुई,
Sonam Puneet Dubey
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
Dr Archana Gupta
कुछ तुम लिखो, कुछ हम लिखे
कुछ तुम लिखो, कुछ हम लिखे
gurudeenverma198
अम्न का पाठ वो पढ़ाते हैं
अम्न का पाठ वो पढ़ाते हैं
अरशद रसूल बदायूंनी
ज़िन्दगी..!!
ज़िन्दगी..!!
पंकज परिंदा
लेखन
लेखन
Sanjay ' शून्य'
बड़ी कथाएँ ( लघुकथा संग्रह) समीक्षा
बड़ी कथाएँ ( लघुकथा संग्रह) समीक्षा
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
हम लड़के हैं जनाब...
हम लड़के हैं जनाब...
पूर्वार्थ
नींद आज नाराज हो गई,
नींद आज नाराज हो गई,
Vindhya Prakash Mishra
..
..
*प्रणय*
"हद"
Dr. Kishan tandon kranti
*रोते बूढ़े कर रहे, यौवन के दिन याद ( कुंडलिया )*
*रोते बूढ़े कर रहे, यौवन के दिन याद ( कुंडलिया )*
Ravi Prakash
सत्य का संधान
सत्य का संधान
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
जो लड़की किस्मत में नहीं होती
जो लड़की किस्मत में नहीं होती
Gaurav Bhatia
एक किताब खोलो
एक किताब खोलो
Dheerja Sharma
हे निराकार दिव्य ज्योति
हे निराकार दिव्य ज्योति
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
एक दूसरे से उलझकर जो बात नहीं बन पाता,
एक दूसरे से उलझकर जो बात नहीं बन पाता,
Ajit Kumar "Karn"
FUN88 là nhà cái uy tín 16 năm tại thị trường cá cược ăn tiề
FUN88 là nhà cái uy tín 16 năm tại thị trường cá cược ăn tiề
Nhà cái Fun88
रंगों के रंगमंच पर हमें अपना बनाना हैं।
रंगों के रंगमंच पर हमें अपना बनाना हैं।
Neeraj Agarwal
Loading...