समसामयिक मुक्तक ….
बसे गद्दार हैं कितने न है गिनती यहाँ कोई.
मिटा अस्तित्व देगें ये अभी है अस्मिता खोई.
लगाकर देश में दीमक खजाना कर चुके खाली,
इन्हें दें दंड करनी का जगा दें आँधियाँ सोई..
–इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’
बसे गद्दार हैं कितने न है गिनती यहाँ कोई.
मिटा अस्तित्व देगें ये अभी है अस्मिता खोई.
लगाकर देश में दीमक खजाना कर चुके खाली,
इन्हें दें दंड करनी का जगा दें आँधियाँ सोई..
–इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’