समसामयिक बुंदेली ग़ज़ल /
पंचों , सरपंचों , नेतों की ।
चरचा होन लगी बोटों की ।
मौ बा रय हैं छैल-छबीले,
आशा जगन लगी नोटों की ।
रँगे-लड़ैया मुलक भरे के,
नुक्की टैन लगे मूछों की ।
जात-पाँत की मेड़ डार कें,
बोनी होन लगी खेतों की ।
अच्छे-अच्छे इज्जत बारे,
मुजरन लगे बात छोटों की ।
भैया पुज रय,विन्ना पुज रईं,
भौजी माँग भरें नोटों की ।
पंडत जी ने कान फूँक दय,
माला फिरन लगी चेलों की ।
पंचों , सरपंचों , नेतों की ।
चरचा होन लगी वोटों की ।।
००००
—– ईश्वर दयाल गोस्वामी ।