समसामयिक कुण्डलियां छंद
खुली बहोत टकसाल, वोट साधन बारे,
काम न आई एक हुई, सब बेकार ब्यौरे,
सब बेकार ब्यौरे, बढ़ गई बेगार लाचारी,
जनता हुई कर्जदार,फैली अखत बिमारी,
कह हंस कविराय,सबनै इब बचना होगा,
धर्म काम कतई नहीं,कर्मफल लाभ देगा,
भारत हारा हार गया एशिया पाकिस्तान,
फिरंगी जीते टॉस, चालू रखा अभियान,
चालू रखा अभियान, दोनों कप सरताज,
जन्म दाता जो रहया, बिठागे इबकै साज,
कह हंस कविराज, सुथरे सबके सब खेले,
राक्खी लाज खेल की, हो गई बल्ले बल्ले,
पहुंच न पाया पानी, पहुंच गई शराब,
समाज हुआ खराब, बुढापा छाड़े रोब,
बुढापा छाड़े रोब, *सिलेंडर पहुंच गया,
नाले गैस उपयोग, बटुआ ढिला हो गया,
अनाज पांच शेर, *शौचालय व्यर्थ गया,
पट्रोल डीजल महंगा, घर गैराज बन गया,