समर्पण
अब तुम्हारे प्रति मैं,
अपना समर्पण पेश करूँ।
मैं अब तुमसे प्रेम,
विशेष से भी विशेष करूँ।।
तू अगर अब कहे तो,
तेरे जीवन का श्रीगणेश करूँ।
अभी भी गर बचा हैं,
तेरे जीवन का कोई अनछुआ पहलू।।
तो चाहता हूँ…
बिना शर्म के तू उसे पेश करें।
तू कहे तो दिल चीर कर दिखाऊ,
कितना मैं स्नेह तुझसे विशेष करूँ।।
मैं बुरा हूँ मगर…
मुझसे अच्छा कोई नहीं मिलेगा तुझे,
तू कहे तो ये वादा मैं पेश करूँ।
मैं तेरा फिर घनश्याम बनू,
क्या इच्छा ये अपनी पेश करूँ।।
तुम बनी अहिल्या फिर जीवन मे,
क्या तेरा मैं उद्धार करूँ।
तुम करो आँख अब बंद जरा,
फिर मुझ पर विश्वास करो।।
नाम शब्द और ध्यान करूँ,
तुझको अब मैं प्यार करूँ।
मैं आया हूँ उद्धार कराने,
कहो तो अब उद्धार करूँ।।
ललकार भारद्वाज