समर्पण !
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समर्पण
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माया का सागर हृदय, लेता रहा हिलोर ।
पीठ किये बैठा रहा, सदा सत्य की ओर ।।
नहीं समर्पण कर सका, प्रभु चरणों में नेह ।
भूल गया हरि नाम को , याद रही बस देह ।।
*
महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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समर्पण
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माया का सागर हृदय, लेता रहा हिलोर ।
पीठ किये बैठा रहा, सदा सत्य की ओर ।।
नहीं समर्पण कर सका, प्रभु चरणों में नेह ।
भूल गया हरि नाम को , याद रही बस देह ।।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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