* समय *
दौड़ रहा है पकड़ो इसको,कदापि व्यर्थ मत जाने दो।
खाली मस्तक के मंदिर में,एक नई किरण तो आने दो।।
जीवन में कब हो जाए उजाला,
भला पता रहता किसको ।
भर जाएंगी कब दिन रातें
भला पता रहता किसको ।
बड़ा बलबती है यह जंतर ,इसको मत हहराने दो ।।1।।
यह है एक उछाह जानकर
कुछ पल बाहर आओ तो ।
सिटी हुई अन्तस् की लय को
आकर थोड़ा—- गाओ– तो ।
छूटना जाए कहीँ हाथ से,इसको लगाम लगाने दो।।2।।
है सुक़ीमती रतन जड़ित सा
इसका— रंग –सुनहरा— है ।
टिका हुआ है जीवन इस पर
देतीं— आसें —पहरा—- हैं ।।
लो बाँध गले में रस्सी इसके,नहीं अधिक लहराने दो।3।
सुस्ताते रह गए छाँव में
फिर ये पल कहाँ पाओगे ।
आज गया जो बीत उसे फिर
कल कहाँ —–पर –पाओगे।
रोको इसको यह कन्दुक सा,कतिपय दूर न जाने दो।4।
ध्यानमग्न हो जाओ समझकर
क्यों अलस वीर कहलाना है ।
गया बह बाढ़ों में जैसे
क्यों रीते मन बहलाने है ।
यह ढाहक है पकड़ो इसको,कदापि व्यर्थ मत जाने दो।5।
———————(नरेश पाल साहब)——————–
जनवरी-03-2018———————–०8.40 शाम