समय
सबको गिला है –
की हमे बहुत कम मिला है ।
अरे जरा ये तो सोचिए जनाब
जितना आपको मिला है
उतना कितनो को मिला है।
समय के टांगे में बैठे है
तो क्यों जख्मों को याद करे
बीते लम्हे बीत गए न ,
अब क्यो न नई शुरुवात करे
ए मुसाफिर …
भूल होनी थी हो गई अब कितना खुदको कोसेगा
नया सूरज निकल रहा है तो मुस्कुराकर जीते जा
ए मुसाफिर ….
बाहर तलाशे पर रब अंदर है तेरा
डरना फिजूल है जब तुझमें खुद हो हौसला
असली खुशी तू जरूर पाएगा ,
जब खुदसे प्यार कर पाएगा।
कभी न होगी तुझे कमी किसी चीज की
जब तू सिर्फ खुशियां बाटते जायेगा ।
-Prachi verma