समय
समय
सूरज-चंदा समय चुराते, काम हमें ना करने देते
झटपट रात अंधेरा लाते, खा-पी जल्दी हमें सुलाते।
कहते कुदरत सबके लिए,लाती पल-पल परिवर्तन है
समयचक्र सर्वहित है, अनियंत्रित श्रम भी वर्जित है।
जो मिला समय वह रहा तुम्हारा, शेष रहा न तेरा है
विश्राम परिश्रम का जीवन, कालखंड में बटा हुआ है।
समय भिन्न, उद्देश्य भिन्न है, प्रकृति मनुज हितार्थी है
सदुपयोग होना अच्छा है,समय आपका निश्चित है।
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—राजेंद्र प्रसाद गुप्ता, मौलिक/स्वरचित ।