” समय “
समय से छुप कर मैं
थोड़ा सा समय छुपा लेती हूँ
पहले इससे रुकने की मिन्नते करती थी
अब इसकी ही नजरों से बचा कर
इससे ही समय चुरा लेती हूँ ,
समय का गणित बड़ा कठिन है
तब भी हिसाब चला लेती हूॅं
चौबीस घंटों में छत्तीस घंटे कहां होते हैं
फिर भी थोड़ा कम ज्यादा करके
मैं भी जुगाड़ लगा लेती हूॅं ,
समय नही है समय नही है कह कर
समय को भी चावल में छुपा लेती हूॅं
दूसरों के लिए भले समय का अभाव हो
अपनों के लिए मर खपकर
समय को तो मैं निकाल ही लेती हूॅं ,
समय खिलाड़ियों का खिलाड़ी है
मैं भी थोड़ा खेल खेल लेती हूॅं
ये बहुत बड़ा शातिर समझता है खुद को
इसी का दांव पेच इसी से सीख कर
इसको मैं जी भर के छका लेती हूॅं ,
समय कभी एक सा नही होता है
ये मैं भी मान लेती हूॅं
समय सबका बदलता है
इस बात को सर झुका कर
स्वेच्छा से स्वीकार लेती हूॅं ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 11/09/2021 )