समय
समय बदलते देर न लगती,
क्यों खोवे है आस ?
नव प्रभात फिर से आवेगा,
रख रे ऐसी आस ।
जब झेलेगा सिर पर अपने,
श्रम-घन की तू मार।
अवधूत तभी सुख का सूरज,
दे सकेगा उजास ।
समय बदलते देर न लगती,
क्यों खोवे है आस ?
नव प्रभात फिर से आवेगा,
रख रे ऐसी आस ।
जब झेलेगा सिर पर अपने,
श्रम-घन की तू मार।
अवधूत तभी सुख का सूरज,
दे सकेगा उजास ।