समय बदलने पर
समय बदलने पर लोगों की
जाती दृष्टि बदल
और बड़ी से बड़ी समस्या
खुद हो जाती हल
नफ़रत करने की आदत में
शेष न रहती दम
बदला लेने की ताकत भी
अनुदिन होती कम
नीच नराधम बन जाते हैं
मानव विमल सरल
रोने वाले नयन किसी के
सदा न रहते नम
विषम तथा प्रतिकूल परिस्थिति
होती समरस सम
दुश्मन के दर्शन पाने को
होता हृदय विकल
ज्ञान सूर्य उद्भासित होता
छॅंट जाता है तम
जिनसे भय खाते थे उनसे
इज्जत पाते हम
देता है दम तोड़ एक दिन
सभी तरह का छल
कृपा बरसती परमात्मा की
दूर भागते ग़म
जो चंचला कहाती जग में
वह श्री जाती जम
कपट कुचेष्टा कदाचार को
मांगे मिले न जल.
@ महेश चन्द्र त्रिपाठी