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23 May 2024 · 1 min read

“” *समय धारा* “”

“” समय धारा “”
*************

चले
समय की धारा बहती,
कब कहाँ ये रूकती है !
संग ले चले सबको बहाती…..,
ना कहीं ठहरे, अनवरत बहती है !!1!!

पलें
समय धारा संग-संग,
ना जानें कितनी ही सभ्यताएं !
और होए चलें विकसित हरेक पल….,
ना जानें कितनी ही मनो संकल्पनाएं !! 2 !!

खिलें
समय संग-संग हम,
चलें बढ़ते जीवन में आगे !
और कभी नहीं मुड़के पीछे देखें….,
सतत अनवरत चलते रहें आगे ही आगे !! 3 !!

महकें
समय धारा संग-संग,
और चलें बाँटते प्रेम खुशियाँ !
जो चले गए छोड़के साथ हमारा….,
उनकी स्मृति में महकालें मन बगिया !! 4 !!

हारें
ना जीवन में कभी,
करें ना कभी कोई पछतावा !
चलें सभी का साथ निभाए यहाँ पे…..,
रहें स्वार्थ से दूर, ना करें दिखावा !! 5 !!

¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥

सुनीलानंद
गुरुवार,
23 मई, 2024
जयपुर,
राजस्थान |

Language: Hindi
91 Views
Books from सुनीलानंद महंत
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