गंगा- सेवा के दस दिन💐💐(दसवां अंतिम दिन)
पके फलों के रूपों को देखें
जहां से चले थे वहीं आ गए !
सब व्यस्त हैं जानवर और जातिवाद बचाने में
चेहरे पे मचलता है ,दिल में क्या क्या ये जलता है ,
जिंदगी जी कुछ अपनों में...
*बचपन यादों में बसा, लेकर मधुर उमंग (कुंडलिया)*
सजी सारी अवध नगरी , सभी के मन लुभाए हैं
रक्त के परिसंचरण में ॐ ॐ ओंकार होना चाहिए।
रहो तुम स्वस्थ्य जीवन भर, सफलता चूमले तुझको,
कूच-ए-इश्क़ में मुहब्बत की कलियां बिखराते रहना,
राजनीति में शुचिता के, अटल एक पैगाम थे।
फर्क़ क्या पढ़ेगा अगर हम ही नहीं होगे तुमारी महफिल
शराब
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
जख्मो से भी हमारा रिश्ता इस तरह पुराना था
" पीती गरल रही है "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "