समय के संग परिवर्तन
अवकाश के साथ साथ
ये खलक परिवर्तन तो
कर ही रही इतस्ततः
औवल की यातना में
मानुज दूर-दूरस्थ की
यात्रा पदाति ही करते
सतत् आज न्यून भी
न्यारा, परे क्यों न होता
पादचारण तो होगा न
देखे इस परिवर्तन को
मरतबा के नर होते थें
जीवंतता पर आज न
क्या यही परिवर्तन है ?
सर्वपूर्व के मनुष्य तो
होते थे गत से भी निज
यही परिवर्तन जगत का ।
अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार