समय के पंखों में कितनी विचित्रता समायी है।
समय के पंखों में कितनी विचित्रता समायी है।
अजनबी रास्तों पर चलकर समझा, इनमें कितनी कठिनाई है।
तारों के निकलने से पहले, गोधूलि शाम की बारी आई है।
और सुबहों की किरणों में भी तो, रात की परछाई है।
इंद्रधनुषी रंगों से पहले, बारिश ने शहनाई बजाई है।
और बारिश की बूँदों ने भी तो, बादल की कलम उठाई है।
रिश्तों के टूटने से पूर्व, धोखे की छटा छाई है।
और उस धोखे ने भी तो, विश्वास की जमीं पाई है।
आँसुओं के इस धार में, अग्नि छिप कर आई है।
अग्नि के जलते ताप में, वेदना की गहराई है।
आत्मा को छलने हेतु, भावनाओं ने कटार् उठाई है।
और भावनाओं की मृत्यु ने हीं तो, वैराग्य की राह दिखाई है।