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3 Sep 2023 · 1 min read

समय के खेल में

समय के खेल में
कब हम उलझते चले जाते है।
हमें ये ज्ञात भी नहीं होता है,
और वो आगे कि ओर
बस बढ़ते चला जाता है।
हम उसके साथ चले तो ठीक है
वरना वो अपनी रफ्तार में चलते
चला जाता है।
वो जानता है बखूबीअकेले चलना इसलिए अपने धुन में वो
मदमस्त सा रहता हैं।
वो जानता है अपनी कीमत
इसलिए खुद को क़ीमती समझता है।
जानता है लोगों को है,
उसकी जरूरत होती ही रहती
इसलिए इत्मिनान से वो बेधड़क
आगे की ओर
बस बढ़ता चला जाता हैं।
ना किसी के साथ की अरमान लगाए
बस अपने ही धुन में मस्तमौला बनकर फिरते चला जाता हैं।

https://www.drmullaadamali.com

Language: Hindi
1 Like · 453 Views

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