समय की धार
चेहरा वही बस जीस्म ढल रहा है
तारिखे वहीं बस दिन घट रहा है
फिर भी गुमान तो देखों इसकी
मिट्टी का है खुद को रब समझ रहा है।।
नितु साह
चेहरा वही बस जीस्म ढल रहा है
तारिखे वहीं बस दिन घट रहा है
फिर भी गुमान तो देखों इसकी
मिट्टी का है खुद को रब समझ रहा है।।
नितु साह