समय की गांठें
मैं जो खुल कर बोल रहा हूं
एक भारी ख़तरा मोल रहा हूं…
(१)
आग उगलती नज़्में लिख कर
माहौल में गरमी घोल रहा हूं…
(२)
दरबारों से किनारा करके
आंदोलनों में डोल रहा हूं…
(३)
अपनी हिम्मत के ज़ोर पर
हुक़्मरानों को तोल रहा हूं…
(४)
आजकल क़लम की नोंक से
समय की गांठें खोल रहा हूं…
#Geetkar
Shekhar Chandra Mitra
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