समय की गति
समय की गति
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कल क्या जलवा था मेरा
और आज किसी और का है
कल किसी और का होगा।
समय की गति का यही तो फेर है,
जिसे हम समझ नहीं पाये
आज एक एक पल मुझे यही समझा रहा है,
मेरी हालत पर मुस्करा रहा है
हर ओर से आइना दिखा रहा है।
कल तक धमक थी मेरे नाम
गूंज थी मेरे काम धाम की,
और आज चर्चा के केंद्र में ही मैं हूं
मेरे काम जो आज कारनामा बने हैं
मेरी नज़र के इशारे भर
हवाएं भी अपना रुख बदल लेती थीं
आज वही हवाएं कांटों की तरह चुभ रही हैं
मेरा मजाक उड़ा रही हैं
जमकर अट्टहास कर रही हैं
मेरी बेबसी पर नृत्य कर रही हैं।
आज दुनिया तमाशबीन बनी है
और मैं खुद तमाशा बन नाच रहा हूँ
उड़ने की तो बात छोड़िए
ढंग से फड़फड़ा भी नहीं पा रहा हूं
अपने आप पर रो रहा हूं
समय का शिकार हो रहा हूं।
समय की गति के साथ कदमताल कर रहा हूं
जब सब खत्म हो गया है आज तो
अब बस खुद को संभाल रहा हूं।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित