समय का मोल
समय का मोल
निज जीवन के आपाधापी में,
जब छूट रहे हों अपने सब,
फिर बाद मिले धन वैभव का ,
रह जाता कोई मोल नहीं।
जब अपने हमें पुकार रहे,
तब मिलने का अवकाश नहीं,
फिर अपने-अपने रटने का ,
रह जाता कोई मोल नहीं।
जब जिसकी हमें जरूरत हो,
ना मिल पाए उस अवसर पर,
फिर उसकी वर्षा कर देने का,
रह जाता कोई मोल नहीं।
जब प्यास से कोई तड़प रहा,
तब पानी न उसे पिला पाए,
फिर उसे निमंत्रण देने का,
रह जाता कोई मोल नहीं।
जब करता कोई निवेदन है,
ठुकरा कर अहम दिखाते हैं,
जब अपनी बारी आयी तब दाढ़ी उसकी सहलाने का,
रह जाता कोई मोल नहीं।
सर्वेश यादव, शोधाध्येता
इलाहाबाद विश्वविद्यालय,प्रयागराज