“समय का पहिया”
“समय का पहिया”
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“समय का पहिया” ना रुका है ना रुकेगा ।
यह तो सदैव अपनी ही रफ़्तार से चलेगा ।।
क्यों परेशान रहते हैं हम सब यदा-कदा ।
वक्त के आगे भला किसका ज़ोर चलेगा ।।
सुख दुःख तो जीवन में आते जाते ही रहेंगे ।
यह तथ्य जो समझेगा वही ज़िंदगी जीयेगा ।।
समय के आगे कोई भी बलवान नहीं होता ।
समय के हिसाब से ही हर कोई राह मुड़ेगा ।।
समय गर कभी ज़िंदगी में तूफां खड़े करेगा ।
तो ये समय ही जीवन में दुष्चक्र से उबारेगा ।।
खूबसूरत से फूल खिले जीवन के उपवन में ।
पर क्या यह फूल हर वक्त ही महक उठेगा ।।
वक्त का मिज़ाज समझना , है बहुत मुश्किल ।
पर वक्त के हिसाब से ही खुशबू घटेगा-बढ़ेगा ।।
ज़िंदगी के रंगीन सफ़र में प्रेम के रंग छिड़कें ।
पर छोड़ दें समय पे कि ये रंग कितना जमेगा ।।
© अजित कुमार “कर्ण” ✍️
~ किशनगंज ( बिहार )
( स्वरचित एवं मौलिक )
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