समय का दौर
समय के इस दौर में मानव अपनी प्रवृत्ति बदलते जा रहे है,
सत्यवादी थे जो वो अब मिथ्यावादी बनते जा रहे है ।
कृतज्ञ अब कृतघ्न बनते जा रहे है ,
अच्छे बुरे के भेद को भुलाते जा रहे है ।
भगवान को व्यापार का जरिया बनाते जा रहे है,
भगवान के नाम करोडो़ कमाते जा रहे है।
योगी थे जो वो अब भोगी बनते जा रहे है,
अपनी तृष्णा मिटाने बहसी बनते जा रहे है।
मधुप भी अब मद्यप बनते जा रहे है,
जो पहले अपेय थे वो अब पेय बनते जा रहे है ।
जो मानुष थे वो अब अमानुषिक बनते जा रहे है ,
अपने-अपने के फेर में मानवता को भुलाते जा रहे है ।
शाकाहारी भी अब सर्वाहारी बनते जा रहे है,
असल को छुपा नकल का दिखाबा करते जा रहे है ।
अपनी सुविधाओं की खातिर समाज को बदलते जा रहे है,
सामाजिक संरक्षण की जगह समाज को उजाड़ते जा रहे है ।
औरौं से क्या लेना-देना वो तो अब स्वार्थी बनते जा रहे है,
दुनिया को उल्लू बना अपना उल्लू सीधा करते जा रहे है ।
डां. अखिलेश बघेल
दतिया ( म.प्र.)