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14 May 2024 · 1 min read

समय का इंतज़ार

किसी ने मुझसे कहा हममें क्या अच्छा लगा,
हमने हंसकर कहा तू इंसान अच्छा लगा ।

यूं तो सब में होती है कोई न कोई बात
मगर जो तुझमें है वो बात अच्छा लगा।

फिर वही होड़ फिर वही तमाशा ये तो होना है,
खैर जो भी हुआ वो इत्तेफाक अच्छा लगा

तेरे शहर से सुनी थी बदनामी के रास्ते,
तुझसे मिलकर लगा, तू बदनाम अच्छा लगा।

बरसातों में उग आते हैं आज भी सतरंगी पौधे ,
तेरा शहर ठीक है, पर मुझे गांव अच्छा लगा ।

यहां हर किसी के अंदर है टूटा हुआ शख्स,
खैर खिलते हुए चेहरों का नकाब अच्छा लगा

मुझे औरों की तरह तो बनना भी नहीं है
मैं ऐसी क्यों हूं? सच कहूं तो ये सवाल अच्छा लगा ।

तेरे जाने के बाद घंटों इंतजार रहा तेरे आने का
वैसे तपते हुए अश्कों का इंतजार अच्छा लगा ।

अब तुम आना तो एक समय भी लेकर आना
मैं पूछूंगी क्यूं सन्नाटों में कांटों का आवाज अच्छा लगा।

अनिल “आदर्श”

Language: Hindi
58 Views
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