समय अब भी है…??
ऐ मानव सुन लो मेरी बात जरा
आंखे तुम्हारी सहज सरल सी
दृष्टि क्यों विकराल भला,,,,,,।
वश में हो व्यसनों के तुम
विकार ही शायद छत है तेरा
ऐ मानव सुन लो मेरी बात जरा,,,,
(* आज मनुष्य जाति विकारों के वसीभूत होकर अपना हद पार करता जा रहा है । ईश्वर के अस्तित्व का हमे कुछ अंदाजा ही नहीं।)