समयातीत साधक
सब चालों की काट उकाब वक्त बही धार,
लहर उठे सो मन वक्त के अनुबंध के पार,
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साधु साधक एक है मत पैदा करो मतभेद,
साधु निर्लिप्त निसर्ग है साधक हंस अभेद,
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गुरु कहे बाहर ते भीतर लेता जा संज्ञान,
समझ से अनुभव बढ़े,कौन बचे अनजान.
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हंस महेन्द्र सिंह