समझ नहीं आता…
सरस्वती, माँ सरस्वती,
हे सरस्वती माता,
किस विधि वंदन करूँ तुम्हारा,
समझ नहीं आता ।
उर के अन्दर भाव असंख्यों,
लेकिन शब्द नहीं हैं,
क्या होती शब्दों की महिमा,
मुझको ज्ञात नहीं है,
हे वीणा वादिनी, वीणा पाणि,
हे माता महाश्वेता,
किस विधि वंदन करूँ तुम्हारा,
समझ नहीं आता।
गर हो इच्छा मात तुम्हारी,
मैं भी कुछ कर पाऊँ,
तो मैं माॅ सबसे पहले स्तुति,
तेरी ही गाऊं,
हे हंसवाहिनी, महास्वामिनी,
जगत तारिणी माता,
किस विधि वंदन करूँ तुम्हारा,
समझ नहीं आता।
बिना ज्ञान के मृत जगअंतस,
इस अंतस में जीवन भर दो,
मिटा बिम्ब अज्ञानतंत्र का,
ज्ञानदीप प्रज्ज्वलित कर दो,
हे कुबुद्धिहरणी, माँ वागीषा,
शुद्ध बुद्धि दाता,
किस विधि वंदन करूँ तुम्हारा,
समझ नहीं आता।
✍ – सुनील सुमन