समझ का फेर
समझ समझ का फेर……
जिस प्रकार दीया प्रज्वलित करने के उपरांत किसी से प्रकाश उधार माँगने की आवश्यकता नहीं होती, हर तरफ उजाला फ़ैल जाता है।ठीक वैसे ही कुंठित-लुंठित विचारों की मानसिकता का भी सामने वाले के मुँह खोलते ही पता चल जाता है।
चम्पा ऐसी ही मानसिकता का उदाहरण है।सबसे हँस कर बोलना, मीठी मीठी बातें करना और पीठ फिरते ही हज़ारों खमियाँ निकालना उसके गुणों में शामिल है।
एक बार चंपा अपने पति के साथ चिकनगुनिया से पीड़ित अपनी माँ को लेकर प्राईवेट अस्पताल गई थी। डाक्टर ने जब महीने भर के लिये अस्पताल में भर्ती करने की सलाह दी तो उसकी चिंता और बढ़ गई। उसी कमरे में एक नन्ही बच्ची को भी आई सी यू में रखा गया। भगदौड़ के कारण चम्पा बहुत अस्वस्थ नज़र आ रही थी। माँ की बीमारी उसकी पीड़ा को और बढ़ा रही थी। । वह दूर बैठी आई सी यू में लेटी माँ को व्याकुलता से टकटकी बाँधे देखे जा रही थी।
अचानक माँ ने कराहते हुए अपनी चादर उतार दी। जैसे ही चम्पा ने चादर ठीक करने के लिए अपना हाथ बढ़ाया उसकी चीख निकल गई। रात भर की बेचैनी गुस्से में बदल गई। अगले ही पल उसने माँ को बाहर निकालते हुए झल्लाके पूछा , ” इस बच्चे के साथ कौन है ? बाहर निकाल लो अपने बच्चे को , गर्मी के मारे माँ की हालत बिगड़ गई है, भला इतने ताप में रखकर अपने बच्चे को झुलसाना है क्या ।” शोर सुनकर अस्पताल का स्टाफ़ आ गया। जाँचने के बाद मालूम हुआ कि तकनीकी ख़राबी के कारण आई सी यू का तापमान ज़रूरत से कई गुना ज़्यादा बढ़ गया था।
नन्हीं बच्ची की माँ ने आभार प्रकट करते हुए कहा “शुक्र है ईश्वर का, आपकी माँ के साथ हमारे लड़की की भी जान बच गई” । यह सुनकर चम्पा आश्चर्यचकित होकर बोली-
” अरे आप लड़की के लिए इतनी चिंता में डूबे सुबह से दौड़ -धूप कर रहीं थी बहनजी, मुझे लगा लड़का होगा। “- नन्ही बच्ची की माँ भौचक्की रह गई और आसपास खड़ी नरसों का मुँह खुला का खुला रह गया।
(व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर।)
नीलम शर्मा