समझौते
ज़िंदगी समझौतों में गुज़र जाती है ,
कभी दोस्तों से , तो कभी रिश्तों से ,
कभी जज़्बातों से , तो कभी हालातों से ,
कभी जुस्त़जू से , तो कभी आरज़ू से ,
कभी तन्हाइयों से , तो कभी रुस़वाईओं से ,
कभी इसरार से , तो कभी इज़हार से ,
कभी अदावत से , तो कभी बग़ावत से ,
कभी तल्ख़ियों से , तो कभी गलतियों से ,
ज़िंदगी भर समझौतों के इस दौर में , हम ख़ुद से दूर होते जाते हैं ,
इस बेब़सी की कश्मकश में , हम अपनी हस्ती खोकर बेख़ुद से हो जाते हैं ,