समझौता
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चंद दिनों का जीवन अपना,
क्यों भरें मन में कलुषता?
मानव मानव से बैर न हो,
उत्तम हो अपनी मानवता।
आओ कर लें समझौता।।
आखिर सीमाओं पर क्या है,
अपनी माटी अपना देश ।
नाहक में जन मरे साधारण,
उतार दो मन मैल मुखौटा।
आओ कर ले समझौता।।
प्यार तुम्हारा बादल जैसा,
समय समय खुशहाली देता
सावन में मेरी धरा जले,
जब प्यार तुहारा नहीं बरसता।
आओ कर लें समझौता।।
क्यूँ भूखों कोई मरे यहाँ,
ये भी तो अपने परिजन हैं।
दो वक्त की रोटी दे उनको,
जिंदा रख अपनी मानवता।
आओ कर लें समझौता।।
न छेड़ कभी नियति को तुम,
परिणाम बुरे हो सकते हैं।
महामारी से भी सबक लेकर,
अब छोड़ दिलों की अमलता।
आओ कर लें समझौता।।
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अशोक शर्मा, कुशीनगर,उ.प्र.