समझौता
अजीब से
हालात के बीच जीना
कितना कठिन
फिर भी जीते हैं ,
लेकिन हालत को
बदलने की
चेष्टा नही करते हैं ,
करते हैं सिर्फ
बड़ी – बड़ी बातें
देखते हैं
ऊँचे – ऊँचे सपने ,
जब करना पड़ता है
इनको सत्य और साकार
बदल जाता है
हमारी बातों और
सपनों का आकार ,
फिर हम
अपनी नज़रों से
खुद को बचाते हुये
सब भूल जाते हैं ,
कहते हैं एक आदमी से
कुछ नही होता
हर हाल में
करना पड़ता है हमें
हालात से समझौता ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 20/04/92 )