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14 Dec 2018 · 1 min read

समझौता

समझौता (हास्य कविता )

अरे समझौता करना सीखना
हो तो हम से सीखो
कदम पर कदम पर
समझौता किया है हमने
जहाँ समझौता तोड़ा
वही हुई है दुर्गति हमारी
सुबह से शाम तक
बरतन माझंने से
कपडे धोने तक
बेड टी बना कर
उसके पास ले जाने तक
खाना बनाने से
खाना खिलाने तक
मन्नू और झोला उठा कर
बाजार जाने तक

हाँ में हाँ मिलाने का
आफिस से सीधे घर आने का
सासु जी को खुश रखने का
सालियो को पानी पूरी खिलाने का

बस समझौते पर ही
जी रहा हूँ यारों
जब से घोड़े के
साथ सजा हूँ
वरमाला डाली है
सातवां फैरा पूरा किया है

अपने को मिश्री की
ढली सी कहने वाली से
नाजो नखरे और
कमसीन सी दिखने वाली ने
ब्याह किया है उसने मुझसे
हाँ बाबा हाँ
आपने सही पहचाना
बीवी है वो हमारी
जो समझौते के नाम पर
नचा रही है मुझ को
सात जन्म से

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

Language: Hindi
417 Views
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