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16 Feb 2020 · 2 min read

समझौता का जीवन

— समझौतों का जीवन

समझौता के पहियों पर,जीवन चलता आया है ,
जिसने वरना जो चाहा , सबको कब मिल पाया है।

आंख खुली तो समझौता ,किस घर में मैं जन्म गया।
कौन मिली माता मुझको ,कर्म मिला क्या मुझे नया।
मुझको तो जँह जन्म मिला,उस घर को अपनाया है।
समझौतों के दम पर यह ,जीवन चलता आया है।
*
समझ नही थी जिससे मैं , थोड़ी जिद कर जाता था।
कुछ हो जाती थी पूरी , कुछ में मन मर जाता था।
कभी कभी तो खा थप्पड़ ,ईषत ज्ञान भी पाया है।
समझौता के पहियों पर ……
*
निकला खेल खेलने मैं , घर से बाहर गलियों में।
कोय खिलाता कोय नहीं, इधर उधर की गलियों में।
इसी तरह रोता हँसता ,बचपन मुझको भाया है।
समझौतों के पहियों पर ,जीवन चलता आया है।
******
जिस स्कूल में पढ़ने भेजा ,पसन्द नही था बिल्कुल भी।
उसे छोड़ना सहज कहाँ , रह जाना था मुश्किल भी।
करता भी तो क्या करता ,सबक हि हिस्से आया है।
समझौतों के पहियों पर…..।
********
खाने से खेल खिलाड़ी तक , सब तकदीर के हिस्से थे।
पहना ओढ़ा जो मैंने, सब किस्मत के किस्से थे।
कॉलेजी गलियारों ने , बस मन को भटकाया है।
समझौतों के पहियों पर ……।

********
सोचा बिज़निस वह कर लूँ , जिससे मन को मौज मिले।
मगर नोकरी कहाँ धरी ,जिससे मैं न करूँ गिले।
आखिर दौड़ भाग करते , बस नोकर बन पाया है।
समझौतों के पहियों पर…..
*****
मिली नोकरी ख्वाब पले ,जीवन साथी चुनने के।
देशी और विदेशी कन्या ,साथी सपने बुनने के।
मगर मिली ममता मूरत ,उसको ही अपनाया है।
समझौतों के पहियों पर……।

************
सच तो यह जीवन क्या है , एक अबूझ पहेली है।
इसकी हर शै अलबेली , एक अंजान सहेली है।
जो भी मिलता गया मुझे , मैंने आनन्द उठाया है।
समझौतों के पहियों पर, जीवन चलता आया है।
फिर भी मुझको गिला नही,जीवन अच्छा पाया है।

मग्सम 5111/2017

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 508 Views
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