समझो नही मजाक
हुई पढ़ाई प्राथमिक, बैठ नीम की छाँव ।
जाते थे पढ़ने वहां, पांच कोस चल पाँव ।
पांच कोस चल पांव,सड़क थी वो भी कच्ची ।
समझो नही मजाक,बात ये पूरी सच्ची ।
सीखी बारा खड़ी , पहाड़ा कभी अढ़ाई ।
मिली लेखनी एक, उसी से हुई पढ़ाई ।।
रमेश शर्मा