समझें तो ज्ञान बढ़े
बरसाते हम ज्ञान को,दिन हो चाहे रैन।
पहले भीगें आप ही,फिर सपना पर नैन।।
अपना-अपना सब भरें,दूजे की ना बात।
प्रकृति अगर ऐसा करे,क्या है मनुज बिसात।।
दोस्ती दिल से कीजिए,बन जाए सौग़ात।
अपनी समझे दोस्त की,दर्द ख़ुशी ज़ज्बात।।
पुष्प सम प्रफुल्लित बनो,फैले यहाँ सुगंध।
बनके रहते शूल भी,पुष्प सहायक बंध।।
जिह्वा पर काबू रखो,हर संकट का अंत।
वाणी बोलो प्रीत की,मन हो प्रीतम संत।।
प्रीतम मन दुविधा रही,चंचल बना अनंत।
भ्रमित हुआ मृग-सा फिरे,संतोष नहीं अंत।।
प्रीतम मन उमंग भरा,जीते आठों याम।
जैसे मीठा फल बिके,मिलता पूरा दाम।।
ज्ञान अधूरा नाश करे,पूरा करे विकास।
अधपका अन्न खाइए,बने अपच का दास।।
प्रीतम गाली छोड़िए,मन को करे खराब।
खुद का इससे मान घटे,खुशी मिले ना ख़्वाब।।
प्रीतम इर्ष्या आग है,करना मत तुम भूल।
मन जलके हो राख-सा,भाव बने पग धूल।।
–आर.एस. प्रीतम
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