Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Mar 2024 · 2 min read

समझदार?

समझदार?

बचपन जिन भाई-बहनों के साथ बिताते हैं।साथ-2 खेलते हैं, खाते-पीते हैं। संग-2 पढ़ते हैं, रहते हैं। बड़े होकर वो सब भूल जाते हैं। बचपन का प्यार भूल जाते हैं। बचपन का साथ-2 हँसना-मुस्कुराना भूल जाते हैं क्योंकि बड़े हो जाते हैं, समझदार हो जाते हैं। समझदार बन जाते हैं,लालच आ जाता है मन में। बचपन में जहाँ भाई-बहन हर चीज प्यार से आपस में बांट लेते थे वहीं बड़े होकर हर चीज सिर्फ अपनी बनाने के लिए लड़ना-झगड़ना शुरू कर देते हैं। पैसे, जमीन-जायदात,धन के लिए एक-दूसरे को दुश्मन समझने लगते हैं। लालच को समझदारी और रिश्तों को बेवकूफ़ी मानने लगते हैं। भाई, बहनों को किसी चीज का हकदार नहीं समझते। भाई, भाई का शत्रु बन जाता है। नकारने लगते हैं बचपन के हर प्यार-भरे पल को, प्यार-दुलार भरे हर एक अहसास को।

समझदारी आ जाती है और रिश्तें चले जाते हैं क्योंकि लालच को ही समझदारी समझने लगते हैं। दूसरों का हक मारने को ही सही जानने लगते हैं। क्यों नहीं सोचते उन रिश्तों के बारे में जो अनमोल होते हैं। उन भावनाओं पर,उन सम्बन्धों पर ध्यान क्यों नहीं जाता जो सच्चे और भगवान द्वारा प्रदान किए जाते हैं। क्यों गैरजरूरी हो जाते हैं जज़्बात। क्यों नहीं समझते कि समझदार होना रिश्तें निभाना होता है,प्यार बनाए रखना होता है, लालच करना नहीं। समझदारी एक-दूसरे का दुःख में साथ देना,दर्द न देना होती है। ये कैसी समझदारी है जो लालच से पैदा होती है, लालच-लोभ से बनती,पलती है। इस तरह के लोग कैसे समझदार होते हैं?

प्रियाprincess पवाँर
स्वरचित,मौलिक
कॉपीराइट

2 Likes · 109 Views

You may also like these posts

शिकायतों के अंबार
शिकायतों के अंबार
Surinder blackpen
मुश्किलें लाख पेश आएं मगर
मुश्किलें लाख पेश आएं मगर
Dr fauzia Naseem shad
अब न जाने क्या हालत हो गई,
अब न जाने क्या हालत हो गई,
Jyoti Roshni
शायरी
शायरी
Rambali Mishra
काश !
काश !
Akash Agam
*व्याख्यान : मोदी जी के 20 वर्ष*
*व्याख्यान : मोदी जी के 20 वर्ष*
Ravi Prakash
प्रेम और दोस्ती में अंतर न समझाया जाए....
प्रेम और दोस्ती में अंतर न समझाया जाए....
Keshav kishor Kumar
ग़ज़ल सगीर
ग़ज़ल सगीर
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
सतनामी राजा
सतनामी राजा
Santosh kumar Miri
प्रेम एक्सप्रेस
प्रेम एक्सप्रेस
Rahul Singh
स्वयं का न उपहास करो तुम , स्वाभिमान की राह वरो तुम
स्वयं का न उपहास करो तुम , स्वाभिमान की राह वरो तुम
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
पंखा
पंखा
देवराज यादव
dr arun kumar shastri
dr arun kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
సూర్య మాస రూపాలు
సూర్య మాస రూపాలు
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
3180.*पूर्णिका*
3180.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
माँ की दुआ
माँ की दुआ
Anil chobisa
दिल से दिलदार को मिलते हुए देखे हैं बहुत
दिल से दिलदार को मिलते हुए देखे हैं बहुत
Sarfaraz Ahmed Aasee
उसके बदन को गुलाबों का शजर कह दिया,
उसके बदन को गुलाबों का शजर कह दिया,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
आभासी रिश्तों की उपलब्धि
आभासी रिश्तों की उपलब्धि
Sudhir srivastava
भेदभाव का कोढ़
भेदभाव का कोढ़
RAMESH SHARMA
क्या ऐसी स्त्री से…
क्या ऐसी स्त्री से…
Rekha Drolia
अपना पन तो सब दिखाते है
अपना पन तो सब दिखाते है
Ranjeet kumar patre
तुझ से मोहब्बत से जरा पहले
तुझ से मोहब्बत से जरा पहले
इशरत हिदायत ख़ान
चलिए देखेंगे सपने समय देखकर
चलिए देखेंगे सपने समय देखकर
दीपक झा रुद्रा
एहसास
एहसास
Ashwani Kumar Jaiswal
"देखो"
Dr. Kishan tandon kranti
- में अजनबी हु इस संसार में -
- में अजनबी हु इस संसार में -
bharat gehlot
नवयुग का भारत
नवयुग का भारत
AMRESH KUMAR VERMA
मु
मु
*प्रणय*
आशा
आशा
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
Loading...