समझदार हैं आप
विषय-“समझदार हैं आप”
सत्य घिरा तम घेर में, न्याय करेगा कौन?
समझदार हैं आप तो, तोड़ें अपना मौन।।
दंभ भरे उर कर रहे, नित कलुषित व्यवहार।
समझदार हैं आप तो, त्यागें मनोविकार।।
कठिन परीक्षा की घड़ी, भूल करें स्वीकार।
समझदार हैं आप तो, मिलकर करें विचार।।
स्वर्ण कलश मदिरा भरा, कभी न पाता मान।
समझदार हैं आप यदि, करें नहीं अभिमान।।
ओछे सुत खुद अहम मैं, आज बन रहे बाप।
धन-दौलत मत सोंपना, समझदार हैं आप।।
पशुवत जो जीवन जिए, जीना है धिक्कार।
समझदार हैं आप तो, सदा करें उपकार।।
सावधान होकर चलें, समझदार हैं आप।
धर्म राह जो छोड़ते, भोगें वो संताप।।
मृदुभाषी बन छल रहे, कमा रहे हैं पाप।
फिर कैसे खुद कह रहे, समझदार हैं आप।।
काम, क्रोध, मद, लोभ हैं, जीवन में अभिशाप।
दुर्व्यसनों को त्याग दें, समझदार हैं आप।।
चिंता चिता समान है, करें न व्यर्थ विलाप।
आगे अब मैं क्या कहूँ, समझदार हैं आप।।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)