समझदारी !
बहुत कुछ खो दिया समझदार बनने में ! नादान था ,तो बहुत अच्छा था , अब अमीरी और गरीबी के बारे में सोचता हूँ , अब शायद जिमेदार हो गया हूँ ,जब नादान था तो चिड़ियों के पंख की तरह कभी इस शहर कभी उस शहर दौड़ता रहता था ,न जाने कब उम्र बड़ी ,और नादानियां खत्म हो गई ।
इन खत्म हुई नादानियों ने एक बात बताया कि , गरीब रह गए तो ,झगड़ा रहेगा, जलन रहेगा, गुस्सा रहेगा, और सबसे बड़ा पापी समाज रहेगा , जिसने श्रीराम और सीता तक को भी नही बख्शा ,हम तो आम इंसान हैं । अगर अमीर बन गए तो झगड़ा कम रहेगा, जलन कम रहेगा , उठना बैठना अमीरों के साथ रहेगा ,उन गरीब तबकों से नही रहेगा जिनमे थोड़े थोड़े बातों पर समाज और इंसान का अहंकार हावी हो जाता हो ।
लोग कहते हैं समझदारी किताबो के साथ आती हैं नही !
समझदारी और जिमेदारी दोनों एक सिक्के के पहलू है जो एक उम्र के बाद बार बार जुझने से आता है आदमी जितना जुझारू होता है उतना ही वह समझदार होता है , परन्तु आज भी लोग भेड के माफिक ही रहते हैं ,जिनमे प्रेम तो हैं लेकिन सहिष्णुता नही । जो सिर्फ अपने निकृष्ट स्वार्थ के पूर्ति हेतु एक दूसरे से सहजीवन की क्रिया करते हैं , पोषण प्राप्त करने के पश्चात वह परजीवी बन जाते हैं और यह प्रक्रिया तब तक होती है जब वह धरती पर रहता है ।
इंसान एक चाभी वाला खिलौना है जिसकी बैटरी खत्म उसका पॉवर खत्म , जीवन में आम इंसान लगभग 99 % व्यक्ति रोटी ,कपड़ा, मकान , के संघर्ष में मर जाते हैं , इसी में वे किसी समाज के प्रेणता होते हैं तो किसी समाज के विलेन ।
व्यक्ति एक उम्र के बाद अपने कृत्य नही छोड़ता ,बल्कि उसकी समझदारी उसे छोड़ने पर मजबूर कर देती है , हमने उम्र के हर कदम पर अपने हिसाब से अपने इच्छाओं की चुनिदा लिस्ट बना ली होती है और उसी लिस्ट के अनुसार हमारा किसी दूसरे से मिलना जुलना होता है , यह व्यक्ति समय के साथ अपने औहदा के साथ कोम्प्रोमाईज़ कर लेता है ,फिर निम्न तबके लोग ,उसे घमंडी ,पागल और हेय की दृष्टि से देखेंगे । और कुछ मध्य वर्ग के लोग उसे अपना हमदर्द मानेंगे , उसके पीछे कुत्ते भांति दुम हिलाएंगे । खैर यह जीवन एक नादानियों का दौर है जैसे ही समझदार हुये , अपने आप ही हम अमीर गरीब के चक्र में फस जाएंगे , स्वयं ही जिम्मेदारी का बोझ उठाने लगेंगे । अगर निम्न और मध्य तबके के हुए तो गरीबी ,बेरोजगारी और गाली गलौज हमारी अच्छे दोसत होंगे । यदि हम थोड़ा मध्य और उच्च वर्ग में है तो शिक्षा , व्यापार , स्वतंत्रता और खुशियां हमारे दोस्त होंगे ,लेकिन हमारे दुश्मन तब निम्न वर्ग होंगे ,उनसे जुड़ी उनकी स्वच्छता, उनका विचार , उनका रहन सहन हमारे लिए दुश्मन होंगे ।
क्योकि जीवन में इंसान एक उम्र तक सहजीवन में रहता हैं लेकिन बाद में परिजीवी बन जाता है क्योकि विकास करना उसके जीवन महत्वपूर्ण उद्देश्य है और वह विकास रोजी ,रोटी ,कपडा ,मकान के इर्द गिर्द ही रहता है ।
मैं बच्चे को बहुत ध्यान से देखता हूँ उनमें कोई प्रतिस्पर्धा नही , उनमें कोई अमीरी गरीबी नही , उनमें कोई अलगाव नही , उनमें कोई समझदारी नही ,अगर है तो सिर्फ प्रसन्नता ! आज की जीने की खुमारी ! और कुछ नही ! और मुझे भी लगता हैं कि भले उम्र बढ़ जाये हमे बच्चे बने रहना चाहिए ,क्योकि इसी में समझदारी हैं ।
~ rohit